शुक्रवार, 5 जून 2020

नीति के दोहे



  • प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
     राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।

  • जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं।
     प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं।।

  • जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
    मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

  • बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
   जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।

  • साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
   जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप।।

  • बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
   हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

  • अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
   अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

  • काल्‍ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्‍ब।
   पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्‍ब।

  • निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
  बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

  • दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत।
   अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत।।

  • जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्‍यान।
   मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्‍यान।।

  • सोना, सज्‍जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार।
    दुर्जन कुंभ-कुम्‍हार के, एकै धका दरार।।


  • पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।

  ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।।

  • काँकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।
  ता चढ़ मुल्‍ला बांग दे, बहिरा हुआ खुदाए।।
                                                        - संत कबीर 
                                                         (दोहा)

1 टिप्पणी:

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