सोमवार, 25 मई 2020

वर दे वीणा वादिनी वर दे!

वर दे, वीणावादिनी वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे!

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर 
    जगमग जग कर दे!

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
 नव पर,नव स्वर दे!

वर दे,वीणावादिनी वर दे।
                                - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
                                   (कविता)

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